बीसवैं सईकै रो चमत्कार

साम्यवाद साचो पण है।

जे कोई जणो पूछै मनै हूं कुण

बात हारै सूं पाछी सुण ले

—साम्यवादी म्हारै आखै मन सूं

अर जीवण रगत रै टोपै हरेक सूं

साम्यवादी चिंतण अर वचन सूं

साम्यवादी म्हारै करम री टेक सूं!

ताजिक रा डूंगर दीपै है।

चढूं हूं अूंजळी, ठंडी अूखा ई।

फळंती घाट्यां पसरी है नीचै,

चिलकणां दपटी, कसूमल न्याई।

सौगन खावूं हूं, म्हारा दळ,

रैसूं निचींतो—ओ पण झालूं

नांव साम्यवादी नित-वित खातर

गरब सूं आखी जिनगाणी धारूं

ताजिक री घाट्यां पसरी म्हारै हेठै—

चावूं जीव सूं, हरखूं अर फूलूं

फेरूं चोट्यां चढ़ता, अूंचा थे पण बधो

चीलकां गेड़ चढै, अर सिखर झूमै।

जीवां थारी खातर, सागै तूं नेत ज्यूं

समझ सूं दीपै है मारग म्हारो

तूं आसै-पासै म्हारै।

म्हारी सौगन थारी

करम रै जुद्ध री धजा है।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : मिर्जो तुरसुन-ज़ादे ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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