बुल्गारिया सूं ज़बरदस्त जंगळी

बंदूकां री गोळ्यां आवै—

सिखरां सूं भचीड़ खाय, भटक’र, पितळ’

गायब व्है जावै—

घिर जावै मिनख, डांगरा, वैगन अर विचार

मारग हिणहिणाय’र

लारै सिरक जावै

आपरा अंयाळ उठावतौ

न्हाट जावै अकास।

सगळो तितर-बितर व्हेय रह्यौ है।

अैड़ै बगत में थूं! उठै रैय जा म्हारै मांय

जठै है, हिल मत

म्हारी मांयली गैरायां में

मून धार अर सदा पळक

ज्यूं सरबनास माथै (अचरीज्योड़ौ) कोई

फरिस्तौ कै कोई सड़्योड़ै रूंख में

कंदरा बणावतौ कीड़ौ।

नौ कौस आगा बळ रह्या है

झूंपड़ा अर घर

अर अठै खेतां री सींव माथै अचरज करता

करसा धुंऔ उडावता बैठा है चुपचाप।

बाजै तळाव रै जळ माथै

गुवाळण छोरी रै पगां री चाप

सरणाटौ तोड़ती लरड्यां जळ झुक्योड़ी

पीवै है मेघ।

बैवै बळदां रै मूंडै सूं रगत-मिळी लाळां

काळोकट व्हेगो लोई सूं

मिनख रौ पेसाब,

पीब भर्‌‌‌‌यै असभ्य टोळै सूं घिर्‌योड़ौ

ऊभौ है

गुलाब!

म्हैं उणरै पछै हौ! घांटी माथै गोळी

अर उणरौ सरीर गुड़ग्यौ

अेक नुचियोड़ी माळा रै दांणै सरीसौ

‘थूं मार्‌यौ जासी यूं’

म्हैं ख़ुद नै कैयौ- ‘सूयजा बोलो बोलो’

अबै फगत धीरज बदळ सकै

मौत नै

धूड़ में ‘दियर स्प्रिंग नोख

ऑफ़’ अवाज़ां आतां आतां आतां

आई नैड़ी

रगत धुळ्योड़ौ कादौ सूखगौ

म्हारै कानां मांय।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : मिक्लोश राद्नोती ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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