काळी रात

आधी रात

दो उल्लू बंतळ कर रैया हा

मिनख नै देख चिंता

कर रैया हा-

''भाया! मिनख नै

कांई हुयग्यो?

उणरो-धरम ग्यान

कठै गुमग्यो?

रगत बहावै है

आग लगावै है!

बम फोड़ै

घर तोड़ै

इज्जत लूटै

बाळक काटै

आखै परिवार

आखै शहर नैं मारै

ओ...ओ...मिनख नैं

कांई हुय रैयो है

बो आदमी सूं

राखस क्यूं बण रैयो है?''

दूजो उल्लू लांबी सांस

छोड़'र बोल्यो-

''गै'ला!

मिनख उल्लू दाईं

रात रो राजा नीं...

मिनख पूरी स्रिस्टी रो राजा है!

इण खातर मिनख

जो चावै कर सकै

पूरी जगती नैं मेट सकै

क्यूं कै बो ग्यानी नीं

महाग्यानी है।''

अबै उल्लू अग्यानी

उण महाग्यानी मिनख नैं

दया री निजर सूं

देख रैयो हो

उल्लू कैवावण में

पिछता रैयो हो।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा
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