उणनै अेकर म्हैं कैयो-

तू देखी है कांई दुनिया?

इण दुनिया माय देख्यां कांई,

डींगा भाखर

बैंवती नदी-सागर,

आभै रै ऊपरां

पळपळावतां तारियां,

चिलकतौ चाँद,

सात घोड़ियां जुतैड़ियै रथ माथै

हुयौड़ा सूरजी सवार।

तू देख्यां है कांई?

काळै बादळां रा टोळां

बरसती बिरखा,

हरखतौ बायरौ,

सतरंगी इंदरधणख,

कंवळी कळियाँ,

भरणावतां भँवरां

मोरियां रो नाच या पछै

कोयलड़ी रो गान।

तू देख्यां है कांई?

तपता धोरा

उड़ती धूळ

खिलता फूल,

चुभता सूळ,

किलोळ करता पंखेरूं,

सगळी रूत मिनख रो हेत,

लैरांवता खेत

बो म्हारी बात नै

काट बीचाळै बोल्यौ—

सुण! कविता रैवण दै

कोई दूजी काम री बात कर।

थ्हनै बेरौ कोनी ओज्यूं

दुनियां रो सांचकलौ रूप,

म्हनै लागै—

ओज्यूं तू देखी कोनी कदेई भूख।

स्रोत
  • सिरजक : घनश्याम नाथ कच्छावा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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