कड़वी धाप’र कड़वी

बातड़ी आई है

जाणलो जैर घोळ्योड़ो है

सांच नै आंच कोनी...।

भाई दूजो बैरी कोनी...॥

सुण’र अणसुणी करदी

सीख म्हारी मानी कोनी

मोख्यां बैग्यो मिनखपणों

म्हैं देखतो रैग्यो

सोचतो रैग्यो

सोच्यां पार लागी कोनी

सांच नै आंच...।

भाई दूजो बैरी...॥

काळजो फड़-फड़ करै

होळ हिंयै रै समुंद उठै

जाऊं अर समझाऊं

कदास बात रै जावै

साख बडेरां री रै ज्यावै

जगत में मांण रै ज्यावै

बातड़ी पार लग ज्यावै

सांच नै आंच...।

भाई दूजो बैरी...॥

ढूंढी साख नैं

सूरज रै चानणै

कठैई साख रा कंकाळ मिळ ज्यावै

कोई सबूत मिळ ज्यावै

मिनखां में स्यान रै ज्यावै

आपणी बात रै ज्यावै

सांच नै आंच...।

भाई दूजो बैरी...॥

बात रैंवती लागी कोनी

साख बडेराँ री कै रैसी

मोल साख रा मिळ्या कोनी

कसार्‌यां लिखा-पढी खागी

सांच जीवन रैयो कोनी

सोनो खरो किंया रैसी

आंच सांच नैं किंया आसी

सांच नै आंच।

भाई दूजो बैरी...॥

स्रोत
  • पोथी : नँईं साँच नैं आँच ,
  • सिरजक : रामजीवण सारस्वत ‘जीवण’ ,
  • प्रकाशक : शिवंकर प्रकाशन
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