मिनख रो

घणो उंचो होवणौ

कठै जस आळी बात है

गांव में टावर नै देखतां थकां

बूडा-बडैरा कैह ही देवै

'बाळ रै, नस दुखण लागगी।'

स्रोत
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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