हाथी दांत रो चुड़लो

उजळांवती बाजरी रै आटै सूं

थे सोच्यो कांई-

इयां ऊजळो हू सकै काळूंस

जिको चिपग्यो

माजना माथै?

इण चुड़लै री खातर

चुड़लै रा गीत गांवती बगत

थारी वाणी नीं कांपै?

थानै नीं सुणीजै गजराज री पीड़?

क्रौंच रो दरद तो कीं दूर हो...

इण पीड़ नै पैरतां कळाई माथै इज

नीं हुवो गळगळी कदै थे!

अर कुण नै देवोली सराप

‘मा निषाद रो..!'

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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