चालो, घरै चालां

अजै तांई नीं बिसूंज्यो है सूरज,

पंछीड़ा हाल नापै

अणमाप आभो।

जे आपां पूगग्या टैमसर

तो देखस्यां—

गांव री तरेड़ां सूं झांकतो मानखो

गवाड़ री तरेड़ां सूं झांकतो मानखो

गवाड़ री गीड भरी आंख्यां नैं पूंछस्यां

लीर-लीर बाजवां

बगतसर चालां घरै

अर देखां बाबै रो थान

कीं करतां।

कै पछै आपां नै

ऊंचावणो पड़सी

इण भाठै रो भार

आखी उमर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुरेन्द्र सुंदरम ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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