देस में

बो ही आदमी

दाम अर नाम कमार्‌यो है,

जो खुद अंधेरा में है

लेकिन

भविष्य दूसरां को बतार्‌यो है,

जयपुर में

हवामहल की फुटपाथ पर ज्योतिषी

हाथ की बजाय

चै’रा की रेखा पढै,

फीस पूरी मिलज्याय तो

‌अेक तोतो पिंजरा सूं निकळ’र

पर्ची की तरफ बढै।

सब सूं पैली अेक नौजवान

पग पकड़’र बोल्यो-“महाराज

देश कै खातर कुछ करणो चावूं”।

ज्योतिषी का आदेश सूं

तोतो पर्ची निकाळी-

“बंदूक थाम सेना में भरती होज्या”।

बंदूक को नाम सुणतां ही

नौजवान कै पसीना आगा

ज्योतिषी कही- “घबरा मत

बंदूक साथ राखणो तो कोरी फारमल्टी है।

दूसमण नै खदेड़बा को

हिन्दुस्तानी तरीको सीख

जुद्ध छिड़तां ही

गोळा-बारूद अेक तरफ धर दीजै,

अर भरी भीड़ में

चंदो मांगबो शुरू कर दीजै”।

अब कै अेक डिग्रीधारी

बेरोजगार नवयुवक आयो,

ज्यूं ही

ज्योतिषी की तरफ दस को नोट बधायो

नोट देखतां ही तोतो पर्ची निकाळी-

फूट्या ढोल

दिमाग सूं काम ले

फालतू मत डोल,

जा, रेल मंत्रालय कै सामनै

कफन की दुकान खोल।

तेरै आगै कोई दुकानदार नहीं टिकैगा

भाग्य प्रबल है कफन खूब बिकैगा’।

माल पाछे दीजै

पैली दाम धरवाजै,

रेडियो, टी.वी. पर

दुकान को यूं

प्रचार कर वाजै-

छोटा-बड़ा हर प्रकार का कफनां को

अेक मात्र स्थान

अेक बार सेवा को मौको अवश्य द्यो

आपकी अपणी दुकान

गांधी जयन्ती का उपलक्ष्य में

बीस प्रतिशत

कम कीमत है,

तूफानी-बम्पर सेल

जल्दी करो

स्टाक सीमित है।

म्हारी दुकान को भविष्य

थां लोगां कै हाथ है,

दोय बड़ा कफनां की खरीद पर

अेक छोटो कफन साथ है”।

लास्ट में आयो अेक कवि-

“मेरै भी पेट है

लोगां नै कुण समझावै,

हर आदमी फोकट में

कविता सुणबो चावै।

अब

तू मेरो भविष्य बतार् ‌यो है

या कविता सुणावूं?

तोतो खट पर्ची निकाळी-

“कवि-सम्मेलन बंद हाल में कर

मुख्य द्वार पर

‘प्रवेश नि:शुल्क को

बोर्ड लटकाले,

अन्दर की तरफ लिखदे-

‘निकळबा का सौ रूपया

अर

जबरदस्ती पटकाले”।

म्हैं मन में सोची-

कुछ पर्ची

अेक पिंजरो

पिंजरा में तोतो,

काश! म्हैं भी

कवि की बजाय

ज्योतिषी ही होतो!

क्यूं कै

ईं देस में

बो ही आदमी

दाम अर नाम कमार्‌यो है,

जो खुद अंधेरा में है

लेकिन

भविष्य दूसरां को बतार्‌यो है।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : सम्पत सरल ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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