म्हैं काम करतां करतां थाकगौ हूं; म्हैं दूजै री

सभ्यता रौ निरमांण करतां करतां थाकगौ हूं

अब म्हैं बिसूंणी लेवूंला म्हारी बाली जैन!

म्हैं अब सैलून जावूंला, अेकाधी बोतल पीवूंला

दो च्यार बाज्यां खेलूंला अर किणीं दारू रै

पींपै माथै सूय जावूंला।

अर थूं म्हारी रांणी! कोई परवा नीं, थारै बूढै मालक

नै सिड़ण दै, गोरै मालक रा गाभां नै लीरा लीरा व्हेण दै

अर डूबण दै नरक री अथाक खायां में गोरां रा

बोदा गिरजाघर

अर थूं ठाठ सूं थारा दिन काढ। बिसरजा कै थारौ

ब्याव म्हारै सूं व्हियौ हौ। ठाठ सूं थारी रातां काढ,

दारू सूं चूंच व्हेय’

खुद रा टाबरां नै नदी में फेंक दै: सभ्यता आपांनै

जरुत सूं ज़्यादा टाबर दे दिया है। सेवट

मोटा व्हेय’र ख़ुद नै सूगला काळा हबसी देखण सूं तौ

टाबरपणैं में मर जांवणौ चोखौ है।

नखतां नै अकास सूं झरूटं’ नीचा फैंक दै। अै निक्करकूटाई

आपांरी क़िस्मत बणाई है।

इण गोरी सभ्यता नै देख’र म्हनै गुचळकी आवै।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : फ़ेंटन जॉनसन ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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