अेक

छात री कड़ी
अर
मांचै री ईस,
दोन्यू जाड़ पीसै,
आदमी माथै,
एक नै टांग दी
एक नै दाब ली
पण आदमी
टंग्योड़ो अर दब्योड़ो
दांतरी काढै।


दो

दिन ऊग्यां पैली
आतंक री धूड़
अखबार
ल्यार पटकी
म्हारै बारणै।
म्हारी आंख्यां मांय गडगी
आंख्यां डबडबा’र
भरीजगी।


तीन

राख मांय दब्योड़ी
चिणगारी,
राख नै झिड़की,
मैं तळै दब्योड़ी
सिलगूं
अर थूं ऊपर पड़ी बुझगी?
राख हांस’र
पड़ूत्तर दिन्यो
मैं डील नै गाळ'र
तनै नीं पाळती,
तो तूं आज म्हनै
झिड़कण आळी,
जींवती किंयां?


च्यार

गाळ आपरो डील,
बणगी राख
राखली छाती मांय दाब,
सिळगती चिणगारी
सिरजण सारू
दूजी आग।



स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : प्रहलाद राय पारीक ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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