वै ऊभा जोवै 'सोनार-किलै' री

झळमळती पीळी पांखड्यां।

वांरी जबान माथै स्वाद रळकै

पेप्सी अर कोका रौ।

गाइड सोधै है स्वाद वारै खुंजां में।

इतिहास'र स्थापत्य रौ घोळतौ स्वाद

वौ टंटोळे वांरा खुंजा।

चिड़ियां रौ अेक ढूळ निकळग्यौ है वांरै ऊपर सूं।

'सोनार-किलै' माथै घिर आई काळी घटावां

टुरिस्टां खोल लीनी है छतरियां

बिरखा रै स्वाद सूं अणजाण।

सोनार किलै सूं अळगौ थार रै पसराव

आपरै खेत री पाळ माथै ऊभै अेक करसै

खोल लीनी है पिरासियै सूं भिंज्योड़ी आपरी बंडी।

माटी री मैक भरतां आपरी फुरणियां

उण उगेरी राग मांड।

उडीकती बेकळू रौ बदळग्यौ है स्वाद।

रंगां सूं भविस बतावण वाळां रै बिचाळे

वधगी है बहस

'स्वाद रौ रंग काळौ है' कै गोरौ !'

घणकरां रौ मत आसमानी रंग साथै हौ।

'समानता' रौ स्वाद बांटणियौ

गाळियां काढै हौ धनपतियां नै।

स्वाद मीडिया रौ चटकारां में

'टी.आर.पी' सारू वै घड़ै

बिना हाथ-पग रा किस्सा।

स्वाद बूढापै रौ बंतळ में

बंतळ रै बिचाळे जावै बेटा

बेटां री आंख्यां सूं अलोप व्हेगौ है बचपणौ

तिड़कग्यौ है हेज रौ स्वाद।

जवानी स्वाद सोधै गळियां-सड़कां माथै

घर-आंगण उण सारू व्हेगौ है बेस्वाद।

'स्वाद' री सारी सड़का अमेरिका कानी क्यूं जावै?

कांई सारी धरती व्हेगी है बांझ?

अेक तणियोडौ चैरौ विगोवै हौ अमेरिका नै।

'समै सगळा स्वाद बिगाड़ नाखिया है'

चरचा चालै ही चौराहां रै ठीक अध-बीच।

'गिरस्थी रौ स्वाद बिगाड़ दियौ इण मंगाई'

मैंगाई स्वाद बिगाड़ दियौ सरकारां रौ

संसद में चालै ही बहस मैंगाई माथै

नेतावां रै चैरां रौ बिगड़ग्यौ हौ स्वाद।

'बिग-बैंग थ्योरी' समझावता साईंस रा टीचर

समझावै हा-

'ब्रह्माण्ड भगवान रै नीं

भौतिकी रै सिद्धांतां सूं चालै।'

सुण स्वाद बिगड़ग्यौ हौ

'आस्था' अर 'बिस्वास' रौ।

जबान रै स्वाद में भर-खपग्या सगळा गिरजड़ा

पारसियां रौ धरम संकट में है।

पाठकां रै स्वाद में नमकीन भेळ रैयौ हौ

अेक अखबार।

म्है बचावूंला धरती माथै मिनखपणौ

घोसणा कीनी ही कवि आपरी कविता में

आपरै आखर रै स्वाद में रमियोडौ हौ कवि।

गाईड लेय आयौ हौ टुरिस्टां नै

सोनार किलै री बुरजां माथै

वौ फेरूं बड़ग्यौ हौ उणां री जेबां में

इतिहास रै रसीलै घोळ सागै।

अंधारै में चमकण लागा हा, गोरहरै किलै रा बुरज

टुरिस्टां री नीली आंख्यां में

उतरण लागौ हौ 'इचरज रौ स्वाद'।

'किण स्वाद रै पांण

सूतोड़ै इण थार रै सरणाटै में

रचियौ वां मिनखां

सोनलिया थार कंवळ।

'जरूर पीवता व्हैला वै

पेप्सी कै कोका जैडौ कोई पेय।

सोनार किलौ

त्रिकूट-पहाड़ी सूं करतौ बंतळ

लेवै हौ उणां रै इचरज रै स्वाद रौ स्वाद।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : आईदानसिंह भाटी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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