नीमड़ली ए!

म्हे तौ तन्नै काचै दूधां सींची पाळी,

काट गिरी पण कोई जुलमी—

फळती लदी-लदाई डाळी!

अब तौ ऊल्या नवा पांनड़ा,

च्यारूंमेरी मींजर फूटै।

लदी-लदाई डाळी अब तूं

आंधी री चपेट में आके

मतना टूटै॥

बेळा आई,

किरणां नै अब हंस बतळाती।

गूंजै फेरूं राग भैरवी में सहनाई।

लियां चांनणौ बेळा आई!!

छियां सिरकिये मत ना,

झुकसी झंझा रौ अब अकड्यौ माथ।

चाल कांगसी जोड़ गाबरू तावड़ियै संग—

छोड़ कदै ना सुगनी धरती-मां रौ-हाथ।

घणौ हौय रह्यौ गजब आज तौ,

जीत होयगी हार।

आज गरीबी खूणै बैठी,

पल-पल करै बिचार।

कद तक मन मारयां रहसी तूं,

बरसावैली नैणां सूं—

कद तक आंसू री धार?

लोही पीवै आज चींचड़ा

बेड़ोळो है डोळ।

सींचण आया नीमड़ली पण राम निकळग्यौ,

बांधी मोटी पांड।

मार बड़ाई झूठ रचावै,

बणग्या कोरा भांड॥

भांडपणै रो खेल दिखावै,

थोथी बांणी बोलै।

बात-बात में बिना बात री

करामात नै तोलै!

कदे-कदे अै नट रौ धारै भेस,

और प्रगति रै लचकीलै बांसा चढ़ जावै।

ढोल ढमाकै राख संतुलण दांत दिखावै॥

खाली पेट भर्‌योडो है अब, बांस टूटसी।

सिर पर धरियौ पापां रो घट बेग फूटसी॥

नीमड़ली ए!

मींजर फूटै, सौरम आवै!!

जड़मूळ सूं पाप उखड़सी,

काची कंवळी-कूंपळ फेरूं—

नई क्रांन्ति रौ सुगन मनावै!

नीमड़ली ए!

मींजर फूटै, सौरम आवै!!

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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