सुण ले बादळ म्हारी बात

थारा लुळ लुळ जोडूं हाथ

आजा, पळ दो पळ आजा म्हारी पोल रै।

आजा, रस को कळस थोड़ो ढोळ रै।

मनवारां कर कर’र थकग्या, सुबरण रंग का टीला,

जोगी सर का तस्या डीलड़ा, कर दै थोड़ा गीला।

बटका बटका होगी काया, अणबोल्या पणघट की

चत लाग्यो चोमासा मै अर आंख्यां आभै अटकी।

लीरां लीरां होग्यो डील

अतनी क्यूं लगा दी ढील।

आजा, तनका ईं बरतन नै झकोळ रै।

आजा, रस को कळस थोडो ढोळ रै।

जिनगाणी बेताल सरीखी डाळ डाळ पै झूली

दमना होग्या बूंळ खैजड़ा, मुरझायी पचफूली

आळया का भाळया में सूता सारा डाब डबूल्या

आंगण भोर गरयाळा सारा बरखा का सूर भूल्या।

म्हां की बार करी क्यूं बार

फीका पड़ता जावै थ्वार

आजा ढाणी का मन में अमरत घोळ रै।

आजा, रस को कळस थोड़ो ढोळ रै।

कद बाजैगा गांव गांव में थारा ढोल नंगारा

कद होवैगी ज्यार बाजरा का घर में पो बारा,

कद गावैगी मोर पपैया मनमन मेघ मलहारां,

कद बरसैगी छपरै छपरै थारी नरमळ धारां,

आंगण आंगण पसरबो काळ

थोडो म्हाकी आडी झाक

आजा, हिवड़ा नै हो सूं खंगोळ रै।

आजा रस को कलस थोडो ढोळ रै।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : प्रेमजी प्रेम ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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