(एक)
उन्हाळा का दिन
दाझणी-भळसणी का दिन
मुस्कल हो जातौ यां दिनां
दो घुटक पाणी मिलबौ
धरती पै चालबो उबाणा
मूंडा पै रूमाल
गळा में रंगीचंगी स्याफ्यां
सगाई-लगन पतासा बांध बावड़ता घरां
गांव गोठ में सम्मलेण
सस्ताई में सध जाता
आखातीज का अबूझ सावा
उन्हाळा का दिन
आंधी-डूंडाळा-बरबूळीया
झक्कर का दिन
अळाया भरिया मोर
मनख का डीलड़ा कै ओळी-दोळी
ढुळती फूंदा ला'गी बीजणियां को
सेळो बायरो कुण बीसरै
जबरो उन्हाळो
ज्यामूंण की छांव तळै
साता सूं कट जातौ
यां बात अलायदी छै
कै आज दूरै-दूरै तांई आंख्यां न्हं दीखै
कड़ी नीमड़ी
मीठो नीमड़ो
सीसम
अर गुलमोर।
(दो)
उन्हाळा कै दिनां ई आती
बोहरा जी की बही मंडती
आखातीज की कौल
तरकाळ में
खरार करता गांव हो जाता
गार भेळै गार
ऊपर सूं कड़ता की लाई
असाढ़ू बादळा
जतना गरजता
उतना बरसता तो फेर
रांवा ई का छा
उन्हाळा में
असाढ साधता बीत जातो उन्हाळो
असाढ
जीकै सोवणै उणियारै दीखता
तरक्की का निसाण
चितारता बुरा दिनां में
आच्छ्यां दिनां सुगण।