कांई ठा कद

चूणवो चोळो

गमक्यो खस रै अत्तर !

कांई ठा कद

कपिला वां पर मरती!

मरी नीं

गई परी सासरै

सूंपती अेक सुख सागर

देही फंसियोड़ी वांरी आत्मा नै।

सुख सागर री लकड़ी

मैं देखूं ठेंगो देतां-वांनै!

उतरतां अजेस उमर री ढाल।

मैं सोचूं—

जीवै कै मरगी कपिला?

जै जीवै तो जीवती है किण ठौड़?

स्रोत
  • पोथी : उतरयो है आभो ,
  • सिरजक : मालचंद तिवाड़ी ,
  • प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन बीकानेर
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