आज घणै बरसां पछै

म्हैं आयौ हूं रोही में

पण ठा नी

म्हैं कत्ती बात सोची

रोही में आवण री

जद में काम करतौ थाकतौ

म्हारा पग रोही कांनी मुड़ता

जद म्हैं लिखणै-पढ़णै सूं ऊबतौ

म्हारा पग

रोही कांनी चालता

सोवणै सं पैलां

अर जाग्यां पछै

म्हैं रोही नै चितारतौ

सैर, भीड़ अर रेस्तरां

बाग-बगीचा

अर ढोल-ढमाका

सगळां सूं उचटतौ मन

अर रोही कांनी भागतौ

आज म्हैं

रोही रै माय ऊभौ हूं

अर देख रैयौ हूं

रोही नै जी भर

म्हारै साम्है

खींप री छियां में

बैठयौ है अेक मिनख

फाट्योड़ी कमीज पैरयां

पसीनां सूं लथपथ

पण उदास नीं

जेठ री बळती लूवां

च्यारूंमेर सूनियाड़

खींप रा हरिया-हरिया

गुच्छा

आभै री जड़ां में

गाढी पोत्योड़ी रेत

बैवतौ बायरौ

खैंऽऽ खैंऽऽऽ

बौ उठ्यौ

अर अेक धोरै रै माथै

जा बैठ्यौ

उण रै खुस हुवण री स्यांन

उण सूनियाड़ में

साव अनूठी ही

उणरै कंठा सूं गूंज्यौ

कोई गीत

अर नाचण लाग्यौ

उणरौ सगळौ डील

बळता टीबा

लू रा लपका

चेतन हुवती सूनियाड़

पण म्हनै लाग्यौ

उणरी आंख्यां कैवती हुवै

मायड़ री गोद रौ

अेक सुख हुवै

फगत सुख।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह सेखावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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