आखर सूं आखर री जोड़नी

सबदां रो रचाव

भाव ही भाव

चावूं रचूं अेक कविता

जकी मन तांई पूगै

पूगै स्रिस्टी रै कण-कण में अर

बतावै कै

कितरी महताऊ हुवै कविता

कदै म्हनैं मिळै

फगत अेक इसी कविता रचण रो अंजस

जकी हुवै कविता

आप नीं

म्हैं कह सकूं है कविता

जकी म्हारै हियै उपजी

उडीक है

आसी अेक कविता

म्हारै हियै रो उजास करसी बयान

उणी अेक कविता री जोवूं बाट

अर करूं

आखर सूं आखर री जोड़नी

सबदां रो रचाव।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : आरती छंगाणी ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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