होठां की कोरां दांतां सूं पकड़्यां

कांई होसी?

दुनियां जाणै छै।

कांटां की डाळी मूठी मैं जकड़्यां

कांईं होसी?

दुनियां जाणै छै।

पाणी मैं रहणो, मंगर सूं झगड़यां

कांईं होसी?

दुनियां जाणै छै।

चन्दण का मूठ्या सूं माथो रगड़्यां

कांई होसी?

दुनियां जाणै छै।

सूळां की क्यार्‌यां लागी

छनवाड़्यां का ओधक नीचा गेलां मैं।

गरमाई जागी-जागी

बहताळ्यां का आडा-ऊंळा रेला मैं।

दारू-बादळ का ऊंचा उठता धोरां मैं।

गळता की गांठ्यां गळगी

आसाढ़ां की काची-कोरो पोरां मैं।

भूल्या-बसर्‌यां पण गेला मैं बगड़्यां

कांई होसी?

दुनियां जाणै छै।

अधजळ गागर ढुळ-ढुळ ज्या

पणघट सूं पोळां आती पगडंडी पै।

डैंकड़ बैठै उड-उड ज्या

मंदरियां की ऊंची उडती झंडी पै।

कांई होसी?

दुनियां जाणै छै?

हुळस-हुळस हिवड़ो हुळसै

पाटण की पैड़्यां बैठ्या पाखंडी को।

उफण-उफण ऊंचो उठतो

ऊंडो बैठ्यो भाव सांझ की मंडी को।

सूरज नैं आंख्यां सूं पकड्यां-पकड़्यां

कांई होसी?

दुनियां जाणै छै।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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