पसर्या है नदी रै
इण ढावै सूं उण ढावै तांई
लेरां माथै सवार सपना
अपघात करै है
हर पळ, हर छिण
माछळ्यां पूछै है
कठा तांई तैर सकां म्हे?
मगरमच्छ नचींत
नींद काढै
वां रा चौकीदार बतावै
पट्टौ नदी रौ
माछळ्यां अर जळ-पांखियां नै।
अमूझणी भर्या दिन
पसर्या है
नदी रै अेड़ै-छेड़ै
चौखूंट।
घाट-घाट बैठ्या है पंडा
सिराध रौ सरंजाम लेय’र
तिरसी आतमावां री
मुगती सारू
नदी रौ अणथाग जळ
बिरथा व्है है!
सूरज री पैली किरण सूं
छेहली किरण तांई
अर देखतां-देखतां
सुनैरी केसां वाळी
नदी री धार
अदीठ व्है जावै
अेक अंधारी खोह में।