सूळी पर चढ दुखड़ा बोल्या,

सुख नै कहज्यो सात सलाम।

म्हे तो टँग्या-टँग्या गुण गावां,

धरती सूं बेसी आराम।

धरती पर ठग-चोर बसै है,

सुख दिन-रात मनावै मौज।

बरत करै दिन-रात गरीबी,

बाँध-बाँध आँसू रो धौज।

सूळी पर लटक्यां-लटक्यां तो

खाली पीड़ मरोड़ै देह।

धरती पर जंजाळ तण्योड़ा,

कसले प्राण, आत्मा, नेह।

घेरो घालै मिनख निकरमा,

घोबा चलै, कठै औसांण।

गारै लीप्यो खून-पसीनो,

राख रुळै, सुख कच्चरघांण।

पळियो ढुळकै रगत भर्‌योड़ो,

मिरियो टपकै ले सुख-बूंद।

पीड़-कढाई तळै गरीबी,

और अमीरी खावै गूंद।

ओगण बेहद नाच दिखावै,

बैठ्या फुलड़ा घणां उदास।

दुरळ माचगी बाग-बगीचां,

बळगी खांवण जोगी घास।

आंगण में तुलसी मुरझाई,

पूजा पर लाठी-बरसात।

मिणत-मजूरी रैपट खावै,

और साधना खावै लात।

सूळी पर चढ दुखड़ा बोल्या,

अब तो म्हानै है आराम।

दो दिन ईं पर टँग्या-टँग्या भी,

लेस्यां राम-श्याम रो नाम।

झिड़की खावै सावळ बातां,

बोल अणूंता सहवै घात।

गति रा पग अब हुया पांगळा,

दिन देखै घुळती अधरात।

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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