बारली भींत काढ़ी जद
भाटो बदखोरो हो
जग्यां-जग्यां छोड जावतो
मत्तो कर'र, कोचरा-सीगर
चिणारो हेलो करतो –
'मूळिया! माटी गिलो'र देई'
अर म्हैं दब जावती
बीं भाटै री ओट,
पण अेक दिन
जद भाटो कसीज्यो
तरैड़ो बोल्यो –
म्हैं भी माटी ही जात री
ले बिरखा रो भानो
आ मिली पाछी
माटी मांय।