बारली भींत काढ़ी जद

भाटो बदखोरो हो

जग्यां-जग्यां छोड जावतो

मत्तो कर'र, कोचरा-सीगर

चिणारो हेलो करतो

'मूळिया! माटी गिलो'र देई'

अर म्हैं दब जावती

बीं भाटै री ओट,

पण अेक दिन

जद भाटो कसीज्यो

तरैड़ो बोल्यो

म्हैं भी माटी ही जात री

ले बिरखा रो भानो

मिली पाछी

माटी मांय।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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