रोवै जका

सोवै कोनीं

सोवै जका रोवै कोनीं

दुख आळी रात

कद आवै नींद

सुख आळी रात

सोवै कुण!

कुण कैवै

रात सोवण

अर

दिन जागण सारु होवै

भलै मिनखां चितारी

सोवो तो रात है

जागो तो बात है

सूत्यां कटै दिन

जकै में

भेळा होवै दिन-रात!

सूत्यां नै जगावणों पाप है

पाप्यां नै जगावणों महापाप

पण चालो

आपां जगावां सूत्यां नै

बदळां पाप पुन्न रा भेद

मिट्यां भेद सी नींद

जकी जगासी जगती नै!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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