म्हारो सनेसो देवण नै

म्हैं थांरै कनै जिण किणी नै भेजूं;

म्हैं सोचूं—

वो खड़खड़ावैला थांरी मेड़ी रा किंवाड़,

सवालिया निजरां सूं थै उघाड़ोला बारणो,

थांरी, बैठक में ले जाय, चांद तारां री जाजम माथै

पूछोला म्हारी खेम-साता,

उणरा हाथां सूं सनेसो लेवतां

परस करैल़ा उणरा हाथां सूं थांरी आंगळियां

कीं तो सरभरा करोला थे उणरी

इण कारण खूब सिणगारूं म्हारी दूती नै,

लगाऊं अतर-फुलेल,

अर हिया रो संपूरण हेत उणरै अंग-अंग में राळ

उणनै भेजूं छिलोछिल थांरै कनै

उणरै पाछा बावड़ियां

करूं इतो लाड, इतो दुलार,

जित्तो कोई कोनी कियो आपरी प्रिया रो आज दिन

पछै भलांई वा दूनी होवै

म्हारा उसांस लियोड़ी पवन,

प्रांणां रा आब री किरण,

झबूकता हिया री आहट

कै म्हारी पूजा लियोड़ी आरती

म्हनैं पूरो रो पूरो पुगावै थारै कनै, म्हारो सनेसो।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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