मारूणी तौ गया परदेस,

मारूणी रा रळक्या नैण रे

पपैया बैरी काहे थूं बोल्यौ ढळती रात,

मारूणी रा रळक्या नैण रे।

कामणगारी नार नवेली,

कर झीणै घूंघट री ओट रे

मारग जोवै टप-टप रोवै,

बिरहा गीत सुणावे रे।

धर मंगरा धर कूंचा म्हारो,

प्रीतम बसियौ जाय रे

याद नीं आवै जीव दुखावै,

छळक्या म्हारा नैण रे।

नैनी नणदल लाड़ करीजै,

हाथा मेंहदी मांडै रे

सावण बीत्यौ भादौ बीत्यौ,

बीत्यौ अगहन मास रे।

पोष माघ री सूनी रातां,

आयौ फागुन मास रे

बेग पधारो पिवजी म्हारा,

मरवण जोवै वाट रे।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : आभा माथुर ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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