कूक कूक ने कोयळड़ी

मचावे घणौ सोर

हूक उठी हिवड़े म्हारै

ना जाणे कोई ओर

ढोला वेगो आईजे रे

सावण आयो चितचोर

गरज गरज णे बाद्ळी

चमके है चारी ओर

णेह बतावण आपणो

बरसे है घणघोर

प्रेम री बरखा में मनड़ो भिगावणे

ढोला वेगो...

सावण रा झूला झूले

गोरणी साथे गौर

मेळा माने जायने

लावे चुळडो रखड़ी बोर

देख णे मन म्हारौ लागे है छिजावणे

ढोला...

झर-मर, झर-मर वरस-वरस

तर-गी आँख्या री कोर

बिरह द्जावण लागण

जौबण व्है ग्यो सूको थोर

मनड़ा ने हर्यो भर्यो कर हरखावणे

ढोला वेगो आईजे रे

सावण आयो...

स्रोत
  • सिरजक : प्रियंका भट्ट ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै