कद भूली मैं

वा सिंझ्या स्यूं सवेरे ताईं री उडीक

वो अँधेरे स्यूं डरतो मेरो जीव

वे नींद स्यू विहीण रातां

जिणरा ठाह नीं कितणा संजोया सुपना

नहीं भूली वे काळी सूनी रातां

सुपना तो दूर आँख्या में नीर भरी रातां नीं भूली

शिकायत भी करती तो किण स्यूं?

कुण हो मेरो

जी स्यूं आस ही वो ही नी हो!

रूठ जावै इण बात रो बी डर

सालतो रात्युं दिन

मन रै किणी कूणै में

अंकुरायो आस रो बिरवो

कदै मुरझावतो

तो कदै झूठे प्रेम री बिरखा स्यूं पांघर जांवतो

पाळ्यौ पोस्यो बणतो रह्यो रूंख

पर अजै ही लाग्यो

इमरत फल

फगत सौरम देंवतो पुष्प

लाग्या तो बस कीं पानडा

तीखी नोक रा

इण रूंख री छियां भी तेरी खातर ही है

मेरे हिस्से तो आज भी बस

तीखा कांटाळा पानड़ा ही है।

स्रोत
  • सिरजक : नीलम पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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