गोधूळी री बेळा छंटगी

सांझ खड़ी है द्वार सखी

मन री बातां मन में टूटी

बीत्या सब उद्गार सखी!

मन मेड़ां पर खड़्यो बिजूको

झाला दे’र बुलावै है

धोती-कुरता उजळा-उजळा

हांडी शीश हिलावै है

तेज-ताप सी जळती काया

विरह करै सिणगारसखी!

पाती कुरजां कहै कुसळता

नैणा चुंवै फिर भी धार

घड़ी दिवस बण संगी-साथी

चीर बदळता बारंबार

घूम रैयो जीवण धुरी पर

विधना रो उपहार सखी!

आती-जाती सारी रितुवां

छेड़ स्मृति का जूना पाट

झड़ी लगी है चौमासा की

आंख्यां सूनी जोवै बाट

कूंपळ जंइया आस खिलाऊं

प्रीत नवलखो हार सखी!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अनीता सैनी ‘दीप्ति’ ,
  • संपादक : रवि पुरोहित
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