गोधूळी री बेळा छंटगी
सांझ खड़ी है द्वार सखी
मन री बातां मन में टूटी
बीत्या सब उद्गार सखी!
मन मेड़ां पर खड़्यो बिजूको
झाला दे’र बुलावै है
धोती-कुरता उजळा-उजळा
हांडी शीश हिलावै है
तेज-ताप सी जळती काया
विरह करै सिणगारसखी!
पाती कुरजां कहै कुसळता
नैणा चुंवै फिर भी धार
घड़ी दिवस बण संगी-साथी
चीर बदळता बारंबार
घूम रैयो जीवण धुरी पर
विधना रो उपहार सखी!
आती-जाती सारी रितुवां
छेड़ स्मृति का जूना पाट
झड़ी लगी है चौमासा की
आंख्यां सूनी जोवै बाट
कूंपळ जंइया आस खिलाऊं
प्रीत नवलखो हार सखी!