तीन बीघा खैत रै,

बठीनलै पसवाड़ै

एक बूढ़ो घर,

बूढ़ै घर री बूढ़ी बारोठ माथै

बेठ्योड़ो

एक बूढ़ो मिनख,

बूढ़ै मिनख री

बूढ़ी आंख्यां देखी

उड़ती रेत

बूढ़ा कान सुण्या

जीप रो घर्राट...

देखतां देखतां जीप

धोरै पर चढ़गी,

जीप सूं उतरिया

कीं धौळपोस

घणी ताळ

बूढ़ो आंख्यां फाड़’र देखी

एक धौळपोस बोल्यो

बणवा द्यूलां सड़क

ठेठ थारै घरां तांई,

इण छांन री जाग्यां

करवा देस्यूं पक्का ठांव,

म्हानै खाली एक वोट चाहीजै थारौ,

बूढ़ो कीं नीं बोल्यो

जीप धूड़ उड़ावती पाछी फिरगी

दूजी जीप आई,

तीजी जीप आई,

चौथी जीप आई,

पांचवी जीप आई,

आंवती रेयी जीपां

जांवती रेयी जीपां

सगळा जणां दियो उण बूढ़े नै

पक्कै मकांन रो वायदौ,

बूढ़ो जोर सूं हांक लगाई-

बेटा बेटा

जकी छांन है नीं आपणी

आज रातनै

कस’र बांध लीजे

बेटा

इण री बातां!

स्रोत
  • सिरजक : कृष्ण कल्पित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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