ग्यान दीठ सूं सैं चन्नण

हीण जात रो

भण्यो-गुण्यो जवान।

घोड़ी चढ़तां

मन रै मांय

उछवां रो समंदर

मारै हबोळा।

हजारूं सपना

सायनी रा

जागती आंख्यां देखै।

ऊंची जात री

मठोठ सूं उपाड़ता

डाह रा भतूळिया

हाथां में सोट

बींद नै पटकण सारू घोड़ी सूं।

अग्यान रो अंधारो ढोवंता

जात री कूड़ी

दाझ सूं भूसळीजता

थे बताओ

हीण कुण?

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : प्रहलाद राय पारीक ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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