नी तो है धाप रोटी

नी है पेट भर पाणी

नी है कठै घास

पण चारुमेर

सगळी ठौड़

पसरी है

संजीवणी आस

इण आस नै

दिन मै

सूरज बाबो

सींचै, पाळै

रात मै

चंदो मामो

रूखाळै उजाळै।

म्हारी थारी

सगळी जीवा जूण री

जीवण जुगत

इणी ढाळै

ढळती जावै

जुग जुगाद सूं

दिन’र रात बिचाळै

रात’र दिन बिचाळै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : दीनदयाल ओझा ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै