धरती माथै जीव-पंखेरू

गगनां में चंदो तारा है।

म्हूं सगळां रो

सै म्हारा है!

चार दिनां रो

फकत तमासो

थारी म्हारो

कांई रासो

थारी म्हारी छोड़

जोत है एक; घणैंरा उणियारा है।

म्हूं सगळां रो

सै म्हारा है!

धरती पर

धणियाप जमायो

धन माथै

इधकार सवायो

परबत बांट्या, समदर बांट्या

बांटणा रा कितरा ढ़ारा है?

म्हूं सगळां रो

सै म्हारा है!

गगनां नैं

बांटण थे चाल्या।

हवा बांटता

कुण पाल्या?

थांरै बांट्यां सूं

बंटीजै बादळ-हवा अजै न्यारा है

म्हूं सगळां रो

सै म्हारा है।

रोक-टोक बिन

फूल हंसै है।

पंखेरू

बे-रोक बसै है

सूरज री रोसणी

चन्द्र री किरण; एक सिरखा प्यारा है।

म्हूं सगळां रो

सै म्हारा है!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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