ओफ! म्हैं बाळपणै री सगळी चीज़ां गमाय चुकौ हूं

म्हैं म्हारौ बाळपणौ

रातां री गैरायां में दफणाय चुकौ हूं

अर अबै अेक अदीठ तरवार

म्हनै हरेक चीज सूं अळगी करै

जद कदैई म्हनै वां दिनां री ओळूं आवै

जद म्हैं थारै सूं प्रेम करतौ हौ

तौ म्हैं अेक गरब गुमेजूं

बीतोड़ै बगत रौ गरब!

अर पाछौ जद इण ढाळै रौ भांन आवै,

रातां री अणंत गैरायां में रम जावूं

अबै पीड़ बधती जावै है

गळौ टूंपती पीड़

लखावै के ज़िंदगानी अेक सबद है

जिकौ जबांन तांई आवतां-आवतां टूटगौ है।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : जुज़ेपे उंगारेत्ती ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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