अबै नीं चांदणी

अर नीं चमकता तारा

नीं निरमळ मोती

तौ नीं बिरखा री फुंवार।

इयां लखावै कै

सगळा सिधायग्या अठै सूं

पण बैम है

वै सगळा बैठ्या

म्हनै दीसै

कोई म्हारै सिराणै तौ

कोई म्हारै पगात्यां

तौ अदीठ

कुण हुयौ?

छिण तौ नीं मिटै

आंरी भेळमभेळ

कदैई तिरस बणै तौ

कदैई सबदां री पड़गूंज।

म्हैं आगूंच कैवतौ रैयौ

स्यात कैवणौ पड़यौ

क्यूं कै म्हैं

रोक नीं सक्यौ म्हारै मन नै, क्यूं कै

सबद नै झेलणौ

सोरौ नीं म्हारा मिंतर।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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