सांच सुणता सटीड़ा लागै

पण जे सांच खुदौखुद

साम्हीं ज्यावै

तो कांई व्है?

अेक पांगळी री आंगळी थाम्यां

आज सांच म्हारै खनै आयौ

ज्यूं बूची बकरड़ी रौ खोड़ियौ गुवाळ-

दोन्यां रौ मेल चोखौ!

पण देखनै इचरज व्हियौ म्हांनै

कै सांच तो सफ्फा बोखौ

बोलै तो हंकळावै

अंगां में सत्त कोनी

जरद उणियारौ: पीळियै रौ

बेम्मार

मुस्कल सूं ढौवे आपरौ भार

अचांणचक निजर रळी निजरां में

नैण : जांणै राखूंडै में दोय आळा नै

वां में काळस रौ लाम्बी जाळौ

हाँ... बठै पळका मारै हो च्यूंटी भर उजाळौ!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण - जयपुर
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