बिद्रोही सदाई व्हिया है परंपरा रा

बिरोधी; कीं सईद व्हे जावै

कीं बच निसरै; चंचळ मिनख

बदळाव लावण में समरथ व्है

नेमां रौ दोरास देख अमीबौ

बंधणां तोड़ न्हांखै, बीज धरती

सूं बारै फूटै। पित्तर, पुजारी अर राजा

रोजीनां हदां खींचता रह्या अर वै टूटती रह्यी

बिद्रोही सदा आपरै राज री योजना करै

कदै अकास में तौ कदै धरती पर

सैसूं सागेड़ौ राज, मणियां ज्यूं ऊजळ

फेरूं जद बिद्रोही री बणायोड़ी सड़कां पक्की

व्हे जावै अर बिद्रोही हक में बदलै

लाल झंडा लाल फीतासाही बण जावै

तद फेरूं नुवां बिद्रोही जलमै

वां सारू इसवर नै धिनवाद। वै सदा

व्हेता रैवैला।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : फ्रैंक ए. कॉलिमोर ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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