आखी रात

बरसतो रह्यौ आभौ

आखी रात

घुळती रैयी रेत।

आखी रात

पचतौ रह्यौ हाळी

आखी रात

महकती रह्यी रेत।

आखी रात

हाळी बीजतौ रह्यौ बीज

आखी रात

उथळ-पुथळ मचांवती रैयी रेत।

परभातियै तारै सूं

थोडौ'क सांत हूयौ आभौ

परभातियै तारै सूं पैलां

सुपनौ देखती रह्यी रेत।

भखावटै-भखावटै

आय'र उमट्यौ कागलां रौ टोळो।

बैंवती रैयी रेत

रेत अर पाणी रै सागै बैहग्या सगळा।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल भाटी ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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