सूकी रोटी माथै प्याज’र लूण री डळी।
म्हानै तो लागै ज्यूं म्हारी लाटरी निकळी।
ऊंचा डूंगर गै’री खायां अबखायां जग री।
लांघैली बेट्यां म्हारी अै भूख में पळी।
बडै-बडां रा मान-माजणां करद्यै चकनाचूर।
मुट्ठी सूं बारै आवै जद अेक आंगळी।
अबकाळै तो स्यात् जमानो लागसी जबरो।
उमड़-घुमड़ उमटी है थांरी रूप-बादळी।
मग में जे थे पलक बिछायां बैठ्या हो सजन।
आवस्यां म्हे पगां उभाणा आपरी गळी।