सरदी रै सामियानै नीचै सुकड़ीजै

आखौ नगर

संद खायोड़ी झूंपड़ियां में

बिदामी गांठड़ियां

बंधीजण लाग जाया करै

ठंड री ठोकरां ठुकीजतौ आदमी

कठै तांई करें

चाय अर ठर्‌रे सूं सेक?

देख छेक कपड़ां में

पून मेख ठोक जाया करै

ठंड रै पसराव सांमी

रजाई अर लुगाई

ओछी पड़ जावै।

मौसम को व्हौ भलाई

धकाधूक आवै अर

टंगड़ी मार जाया करै।

बरसातां

बधजावै खतरौ

चप्पल रै तूटण रौ

मजौ आवै

बजार नै

मौसमी वायरा नै लूटण रौ

कपड़ा अर कादै बिचाळै

थरपीजै दागोल रिस्तौ

भीज्योड़ी

भिजोयोड़ी

चीजां साथै पाणी

चढ़ जावै कांटै अर

गरीब ग्राहक नै काटै।

हवा री गरम हथेळियां

फेंकै रेत

अर सगळौ बदन

रेत-रेत रेतिया व्है जावै

कपड़ां नीचै

पसरै चिपचिपाट

बासै पसीनौ

बदन माथै कपड़ा

जूतां में पग अर

मांय सूं मन

बळण लाग जावै।

आदमी

घणा दोरा भेळा कर

ठंडक रा किरचा

बिना पाणी

पाणी-पाणी व्है जावै

मौसम है के

मांवौ-मांय

तिरस री धार तीखावै।

ज्यूं-त्यूं

मौसम री मार खावतौ मिनख

आखती-पाखती ओट लेवतौ

हाथ-उधारा हथियारां

मुकाबलो मार जाया करै

मौसम

वार करतो आवै अर

हार खावतौ जाया करै।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन
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