आगा हो जावो बा'सा

अणसम मारग में क्यूं बैठा हो!

दीसै कोनी, सूरज रो आवै है रथ अठीने!

चिगदीज जावोला;

कित्ता वेग सूं आवै है, देखो देखो,

इण रा आवेगा सूं आगती-पाखती ऊठणवाळी

आंधी अर बधूलिया में उड़ग्या तो

थै थांरी जांणो;

थोड़ी वळा फेर टिकणो होवै

तो उण धुड़ता ढूंढा भींतां लारै

छींया में बैठ जावो बा'सा,

सूरज रो वेगवान रथ अठीनै इज आवै है।

वो देखो इंगरेजी बोलतो थांरो पड़पोतो

रीस आवै जद हंसण लाग जावै;

बार बैठा उडीकतां, उणनै सरम कोनी आवै,

जद ना कैवणो होवै, वो हां बोल जावै।

अर कैड़ो तो बदळाव आयो—

कै टाबर म्हैं कोनी रह्या;

टाबरां ज्यूं रमै है मोटयार;

गरीब-गुरबा ज्यूं कारी लाग्योड़ा गाभा पैरै रईस,

धरम गुरु घड़ी घड़ी परणीजै,

अर जणा जणा कन सोवती धीवड़ियां गरभीजै कोनी!

तो अेकांनी-सिरक जावो सचबोला बा'सा,

चोरी कुण कोनी करै?

कुण कोनी-छिपावै आपरा करम?

छळ कपट रो है महाभारत;

थांनै यूं कोनी दीसै बा'सा

मिनख रा बदळता मन री कालायां

थांनै कीकर सूझै!

वो आवै है सूरज रो सतरंगो रथ,

नया नया औजार अर हथियार

उठा लिया है मिनख!

नया नया नसा-पता,

नागा रैवण नै पैरियोड़ा नया नया गाभा!

बगत री तो मिटगी सगळी ओळखांण

रात होयग्या दिन,

अर दिन होयगी रातां;

थांनै उठाय अेक कांनी धरण नै

कोनी रुकेला मिनखां रा पवनवेगी यान!

हां बदळग्या सै कीं बदळग्या

बगत, अकास, अरथ, धरम, प्रीत, कांम,

धमीड़ो थे कोनी सै सकोला बा'सा

आगा हो जावो;

सिरक जावो अेक कांनी,

उठी छीयां में जावो परा,

आवै है हित्यारा सूरज रो निपग्गो रथ!

आवै है!

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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