म्हनै

पिछाण करण दो रंगां री

रंगां सूं पुत्योड़ा चेहरां री

म्है डाफाचूक होग्यो हूं

देख-देख, उणियारे पे पुत्योड़ा रंगां नै

क्यूं कै मिनखां रा चेहरां पे सोवता

मन मोवता, भांत-भांत रा रंगां सूं

उणां रै करतबां रो कोई तालमेल कोनी

म्है दोगाचिंति में हूं

रंग इतरा बदरंग किंकर होग्या?

प्रेम रो सनेसो देवता

हंसी-खुसी हेत दरसावता

अेक-दूजे रो भलो चावता

रंगां नै कांई होग्यो?

अबै, अेक दूजे नै देख’र मुळकणो

गळे लगाणो, बाथां मिळणो तो

सुपनां री बातां होगी

अबै तो—

राता रंग सूं रगत रा सैनाण निजर आवै

मिनख रै मन में छुप्योड़ो काळूंस

हर रंग पे छावै

केसूलो—उडीकतो-उडीकतो

हर रंग पे छावै

केसलो—उडीकतो-उडीकतो

सूख’र मुरझाय जावै

पण कोई भी उण नै गोद में नीं बैठावे

आपणां कंवळा हाथां सूं कोनी मथे

होळी खेलण वास्तै

जठे हरियो रंग मूंडे बोलतो

अेक दूजे री खुसहाळी रा गीत गावतो हो

वठै अेक दूजै नै

तेहरवे पाताळ पूगावण री सोचे

कुण सोख लीदो

पीळा रंग रो रस?

कुण रा इसारां पे लागगी चुप्पी

मधुर-मधुर गीतां पे

खुसी री बोळ-बतळावण री ठौड़

उडग्यो रंग चेहरां रो

पीळा पड़ता मिनख री पीड़

बतावण नै कोई त्यार कोनी

म्हनै लागै—

आसमानी रंग पे छायग्यो अंधारो

गड़बड़ होग्यो रंगां रो संसार सारो

रंग मिनख रा अणूता ढंग सूं हारग्या

अचंभो है—फैर भी धरती सूं

रंगां रो बीज गम्यो कोनी

नारंगी, जामुन, नींबू अंगूर कांई कैवे?

तरोई, तोता, समदर ले’र, सवा पंखी

मेहंदी, मोती, गुलाब, चम्पा, चमेली

कदै चुप रैवे?

बदळता रंगां री रंगत

कदै फेरूं बदळसी

आओ—अबाणूं तो

रात बितावण नै ढोल बजावां

फागण गावां

देवां नूंतो परभात नै

अर, बिदाई-रात नै

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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