रमझम थांकी रेखळी, रूपाळा थांका बैल।

थांकी जान जनेती पाछै, छूट्या म्हांका छैल॥

म्हारी मांग भर्‌यो सिन्दूर, उगता सूरज को पगडंडी।

छणगादार थांको स्याफो, लहराता बादळ की झंडी।

म्हारी धरती गडती नजर्‌यां, थांका खेतां रमता नैण।

मळकण म्हारै होठां फूटी, थांकै मूंडै मीठा बैण।

ऊमर उठी जवान हो गयो, म्हारो बाळपणा को खेल॥

धक-धक रमगी काळजिया मैं, आंधी सांसां मैं सरणावै।

हचकी का हचकोळा खा-खा, हरदा का पड़दा झरणावै।

टन-टन बाजै कड़्यां-नेवर्‌यां, झन-झन झांझर अर रमझोळ।

चक्कर आवै मन फर जावै, बणगी रेखळी चकडोळ।

कोई अणचीती, अणजाणी, अणसमझी सी आवै सैल।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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