छोटी होवै

भलां

मोटी होवै

दो जूण घर री

रोटी होवै!

घर रो चूल्हो

कदै ना भूलो

चेतन चूल्हो

स्यान बणावै

अचेत चूल्हो

स्यान गमावै!

खाली पेट

कुण धणीं

भर्यै पेट

लाख!

रोटी में

राम बसै

रोटी सारु

राम खस्सै

सगती है

रोटी खायां

मुगती है।

आदर बिन

रोटी खाओ

बिरथा थारी

जूण गमाओ

इण रोटीं सूं

धूड़ फाकणीं

आच्छी है

बात कथी कोई

साच्ची है।

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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