राजनीति नी गाय नै

खास करी नै

मनक

दूध हारू पाळै है!

गाय नै

सार पूरो करैं

हाटे दूध जूवै!

दूध बंद

तो बड़िया सेवा बंद

फेर ई...

भूखी मरवा न्हैं दएँ...

पण

घणं मनक

अैवं रएँ जे

गाय पाळतं नथी

आपड़ु सवारथ...

हिदू करैं

वना सार पूरै/सेवा'अे

दूध जूवै

दूध न्हैं आले अैवी दशा में

आक्सीटोसिन

लगाड्वा थकी पण न्हैं चुकै!

छैल्ली वगत/अंत टैम'अे

अेणी बिचारी गाय नै

सार-पूरो तो सुड़ो

घाड़ी नै लई जअेँ

कटनीखाना हूदी....

पण

कोई पुण्यात्मा'स व्है

जै निष्काम भाव थकी

फकत

आणी गाय नी

सेवा करै।

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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