नीं आवै नींद

दिन अर रात रो भेद नीं है

रात रो चानणो

अर दिन रो अंधारो

अेक जैड़ो ही है।

सपना तो है

रगत बैवती आंख्यां मांय

हरियाळा सपनां लेंवती

डूबती आंख्यां

डूबी नीं है

डबडबाती लाल सुरंगी

पगडंडी माथै

सूखती जमीं भी

हंसती दिखै ही

रगत री बिरखा मांय

हरी नीं ही

लाल हुयगी

सूखती जमीं

आंख्यां काढती

जमीं।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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