(अेक)

घणी देर सूं खूरच रह्यो छूं
आसमान की काळी भींत नै
तीखा नाखूंना सूं
कै उजळी हो ज्यावै भींत
खडज्या परभात
पण या रात म्हारा हाथां में
काळिख मळरी छै
अर क्हैरी छै
अबार तूं सूरज नं बण्यो!

(दो)

दिन आंथबा कै घणी देर बाद जागै छै रात
अर पहरो देती रहै छै
कै कोई उजाळो आय’र सेंध नं करज्या
मिनख्यां की आंख्यां में
कै आज भी केई मिनख
भूखा ई सो र्‌या छै।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : किशन ‘प्रणय’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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