म्हनैं नीं ठाह

प्रेम री परिभाषा कांई है?

पण जद ही म्हैं देखतो

म्हारी ढाणी कन्नैं

हुचरिया चाटती

बीं कुतड़ी ‘पेमी’ नैं

बा चुंगावती ही च्यार अेक नैं

अर बांनै बचावण सारू

भुसती मिनखां नैं

दौड़ती बांरै लारै

भिड़ ज्याती खुदरै बचियां सारू

कोई सूं भी

जणै म्हैं विचारतो

अै क्यूं करै इंया

पण समझ कोनीं आवती बात

जद म्हैं पूछियो दादी नैं

अर दादी मुळक’र कैयो

भोळिया!

तो प्रेम है।

स्रोत
  • सिरजक : सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
  • पोथी : भींत भरोसै री ,
  • सिरजक : सत्येंद्र चारण ,
  • प्रकाशक : वेरा प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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