प्रेम तो जद हो

जद फगत सुपणा लेवंता

अब तो दही रै भरोसै

रुई खार्‌या हां।

प्रेम तो जद हो

जद पैन कापी मांग'र लेवंता

अब तो कविता लिख

जीवड़ो टिकार्‌यां हां।

प्रेम तो जद हो

जद धोळती रै घर सूं ओळमां आवंता

अब तो ओळ्यूं लेर

भींत टक्कर खार्‌यां हां।

प्रेम जद भी हो

प्रेम अबा'र भी है

फरक फगत इतणो है

जद करता हा

अब बाण बरतार्‌यां हां।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप पारीक 'दीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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