आवगी दुनिया आ जांणै
वौ कमाई सारू परदेस गयौ छौ
जठै गयौ वठा री भासा उण सीखी
जांणै भासा
उण इलाकै रै फळसा रौ आडौ व्है
अर उणरै उघड़ियां बिना मांय पेसणौ नीं व्है सकै
उण वठा रा तैवार मनाया
वठा री अेकूकी रीत निभाई
वठा रा रेवासियां रा हरख में नाच्यौ
अठा तांईं के वांरा उछब
आपरा पईसा खरच मनाया।
उण वठै इस्कूल बणाया
धरमसाळ अर सफाखाना बणाया
वठा रा वासी सफाखांनै सावळ व्हैता रह्या
अर इस्कूल में आपरी भासा भणता रह्या
‘केलिको’ री धोती अर तांत रौ कुड़तौ
होठां माथै उण देस री भासा
मूंडा में पांन रौ बीड़ौ
हाथ में छतरी वाळौ हाथौ
इत्ता बरसां पूठै कठारौ गिणीजैला?
सरकार कदैई नीं पूछ्यो—
किण ठौड़ रा छौ?
वौ जठै छै
उण ठौड़ रौ मुक्कमल महाजन छै
वौ सोचतौ रह्यो।
उण कदैई परवा नीं करी
के वौ किण भासा रौ नागरिक छै।
आ बात सनद रेवै
के वौ जद-कद रोयौ, राजस्थानी में रोयौ
हां, हंसियौ केई दूजी भासावां में
उणनै रीस हरमेस राजस्थानी में आई
हां, उण लोगां सूं ‘सॉरी’ पराई भासा में कह्यौ
उण हरमेस ‘देस री जै’ बोली
‘भारत-माता’ री संधी में उणनै अमूझणी आवती
वौ पुल्लिंग भारत नै स्त्रीलिंग माता कैवण सूं बचतौ
यूं औ उणरी भासा री व्याकरण रौ मसलौ कोनीं छौ
अबै उणनै ‘राष्टभक्त’ मांनौ के नीं मांनौ
आपरी मरजी।
औ अखरै
के वौ मरणौ आपरी मायड़भासा में चावतौ
उण खांपण ई आपरी भासा में मांग्यौ
‘रांम’ ई उण आपरी भासा में कह्यौ।
वौ पूरी उमर
हरेक ठौड़ ‘दाग’, ‘रथी’, ‘लांपौ’, ‘कपाळीदाग’
‘छारी सावरणौ’, ‘सांतरवाड़ौ’, ‘तापड़’ जैड़ा सबद
बरततौ रह्यौ
इण बात सूं बेपरवा के दूजी भासावां में
आं सबदां रा परयाय कांई छै?
उणनै आपरै मुगातर में
कोई संसौ कोनीं छौ
आपरी माटी देस री माटी में रळावण रौ
नेहचौ छौ
कवि नै पूरी ठाह छै
के उण प्रवासी री मुगती में कीं वांदौ नीं
भासा री कांयस तौ जीवतां भुगत ली।