टापर्‌यां री कळ्यां फूलड़ा होयगी।

समझो देळ्यां सूं खुशबू हवा होयगी।

सोळवैं साल नागां री निजरां चढ़ी।

डीकर्‌यां गौर रा गुलगुला होयगी।

सा’ब री गरज ही सिर्फ सौरम तईं,

कच्ची कळियां कई हामला होयगी।

ना कीं बोलै ना चालै बिसूरै खड़ी

जिन्दगाणी बकरियै री मा होयगी।

बेई निरधन री जोबन रै झागां चढ़ी।

सूकतै रूंख रा पानड़ा होयगी।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : जनकराज पारीक ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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